चंडीगढ़, 11 दिसंबर, 2024:
औषधीय पौधों की खेती और उनके संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का सफलतापूर्वक समापन हुआ। यह कार्यक्रम राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड (आयुष मंत्रालय), जोगिंदर नगर (हिमाचल प्रदेश), ग्रामीण विकास विभाग, एनआईटीटीटीआर चंडीगढ़ और पर्यावरण एवं वन विभाग, चंडीगढ़ प्रशासन के संयुक्त प्रयास से आयोजित किया गया था।
कार्यक्रम की मुख्य बातें:
- औषधीय पौधों की खेती पर विशेषज्ञ सत्र:
इस कार्यक्रम में अश्वगंधा, मोरिंगा, एलोवेरा, अशोक, करक्यूमिन और काली मिर्च जैसे औषधीय पौधों की बढ़ती मांग और उनके उपयोग पर चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने बताया कि अश्वगंधा का उपयोग 5 ग्राम तक सीमित करना चाहिए। यह न केवल नींद में सहायक है बल्कि युवाओं के मसल मास बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है। - राष्ट्रीय अश्वगंधा अभियान का शुभारंभ:
इस अभियान के तहत 2 लाख अश्वगंधा के पौधे वितरित किए जाएंगे। स्थानीय निवासियों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अपने घरों में गमलों में अश्वगंधा लगाएं। - हर्बल गार्डन के विकास पर चर्चा:
शिक्षण संस्थानों में औषधीय पौधों के हर्बल गार्डन विकसित करने की तकनीकों पर जानकारी साझा की गई। - फील्ड विजिट:
प्रतिभागियों को मोहाली में विकसित औषधीय जड़ी-बूटी गार्डन का दौरा कराया गया, जहां उन्होंने व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया।
विशेषज्ञों के विचार:
डॉ. अरुण चंदन (क्षेत्रीय निदेशक, राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड) ने कहा:
“औषधीय पौधों की खेती न केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह किसानों और समुदायों के लिए आय का स्थायी स्रोत भी बन सकती है।”
डॉ. यू.एन. राय (अध्यक्ष, ग्रामीण विकास विभाग, एनआईटीटीटीआर) ने कहा:
“इस प्रकार के कार्यक्रम नीतियों और जमीनी क्रियान्वयन के बीच की खाई को पाटने में मदद करते हैं।”
भविष्य की योजनाएं:
आयोजकों ने घोषणा की कि इस पहल को अन्य क्षेत्रों में विस्तार दिया जाएगा। आने वाले महीनों में औषधीय पौधों की खेती और उनके व्यापारिक उपयोग पर और भी प्रशिक्षण सत्र आयोजित किए जाएंगे।
यह कार्यक्रम औषधीय पौधों और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ सामुदायिक भागीदारी को प्रोत्साहित करने का एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ है।