चंडीगढ़, 9 दिसंबर: कुरुक्षेत्र के अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव में भारत के विभिन्न हिस्सों से आए शिल्पकारों की शिल्पकला और लोक कलाकारों के नृत्य ने महोत्सव को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। इन शिल्पकारों और कलाकारों द्वारा अपनी कला को बड़े ही अनोखे और आकर्षक तरीके से पर्यटकों के सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।
कश्मीर से आए शिल्पकारों ने पारंपरिक वस्त्रों को प्रदर्शित किया, तो पंजाब से आई टीम ने फुलकारी कला का प्रदर्शन किया। वहीं राजस्थान की मिठाइयाँ और असम के पारंपरिक परिधान “खेंजा” भी महोत्सव में सजाए गए हैं। इन सभी कलाओं और वस्त्रों के बीच, एक और महक ने महोत्सव को और भी खास बना दिया – प्राकृतिक अगरबत्तियों की खुशबू।
अगरबत्ती बनाने वाले छोटे व्यवसायी राजेंद्र कुमार ने बताया कि, “अगरबत्ती हमारे देश में पूजा का अभिन्न हिस्सा है। श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए, हम पूरी तरह से प्राकृतिक और शुद्ध सामग्री का उपयोग करते हैं। इसमें कोई रासायनिक पदार्थ नहीं होता और हम विभिन्न फूलों का इस्तेमाल करते हैं। खासतौर पर, कस्तूरी का उपयोग ठंड के मौसम में अधिक सुगंध देने के लिए किया जाता है।”
राजेंद्र कुमार पिछले कई वर्षों से गीता महोत्सव में भाग ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस महोत्सव के दौरान उनकी अगरबत्तियों की बिक्री बहुत अच्छी हो जाती है। इसके अलावा, वह देश के विभिन्न मेलों में भी अपने स्टॉल लगाते हैं। उनकी तैयार की गई अगरबत्तियों की कीमत 30 रुपये से लेकर 100 रुपये तक है।
इस महोत्सव ने न केवल भारतीय शिल्प और संस्कृति को प्रदर्शित किया, बल्कि प्राकृतिक खुशबूओं के जरिए वातावरण को भी और अधिक महकदार बना दिया।