2 जनवरी 2025:
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सहमति संबंध में रह रहे पंजाब निवासी जोड़े को सुरक्षा देने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि व्यक्ति पहले से ही शादीशुदा है और उसके बच्चे भी हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में संरक्षण देने से गलत काम करने वालों को बढ़ावा मिलेगा और भारतीय समाज के नैतिक मूल्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
जस्टिस संदीप मौदगिल ने अपने आदेश में कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्रत्येक नागरिक को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार देता है, लेकिन यह अधिकार कानून के दायरे में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में याचिकाओं को स्वीकार करने से द्विविवाह जैसी अवैध प्रथाओं को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध है।
कोर्ट ने कहा कि विवाहित व्यक्ति का सहमति संबंध में रहना सामाजिक ताने-बाने और नैतिक मूल्यों के खिलाफ है। इस तरह के अवैध संबंधों को वैधता प्रदान करना अन्यायपूर्ण होगा। यह उस व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करेगा, जिससे विवाहित व्यक्ति ने पहले विवाह किया था। कोर्ट ने कहा कि ऐसे जोड़े अपने परिवार और माता-पिता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह न केवल माता-पिता के अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि समाज में परिवार की गरिमा और सम्मान को भी ठेस पहुंचाता है।
हाईकोर्ट ने विवाह को एक पवित्र और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण रिश्ता बताया। कोर्ट ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का संबंध नहीं है, बल्कि यह सामाजिक स्थिरता और नैतिक मूल्यों का आधार है। पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से भारतीय समाज के सांस्कृतिक मूल्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सहमति संबंध जैसी आधुनिक जीवनशैली को स्वीकार करना हमारी गहरी सांस्कृतिक जड़ों से भटकाव है। भारतीय समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक है, व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का दुरुपयोग करके सामाजिक ताने-बाने को क्षति नहीं पहुंचाई जा सकती।