बचाव के उपाय
प्रोफेसर जैन ने भीड़भाड़ वाली जगहों से बचने, नियमित रूप से हाथ धोने और मास्क पहनने को वायरस से बचाव के प्रभावी तरीके बताया है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पीजीआई में इस प्रकार के संक्रमण के प्रबंधन के लिए सभी आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं।
क्या है एचएमपीवी?
एचएमपीवी एक श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाला वायरस है, जिसे पहली बार 2001 में नीदरलैंड के वैज्ञानिकों ने पहचाना था। यह पैरामाइक्सोविरीडे परिवार का सदस्य है। अन्य श्वसन वायरस की तरह यह भी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने के दौरान निकली बूंदों से फैलता है। शोधों में यह दावा किया गया है कि यह वायरस पिछले छह दशकों से मौजूद है।
एचएमपीवी का किस पर अधिक असर?
- बच्चे: मुख्य रूप से छोटे बच्चों को प्रभावित करता है।
- कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग और बुजुर्ग भी इसके जोखिम में हैं।
इस वायरस के कारण सर्दी, खांसी, बुखार और कफ जैसी समस्याएं हो सकती हैं। गंभीर मामलों में, श्वसन नली में सूजन और ब्रोंकियोलाइटिस या निमोनिया की स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता पड़ सकती है।
कोरोना वायरस से कैसे अलग है एचएमपीवी?
हालांकि एचएमपीवी के लक्षण फ्लू और कोरोना वायरस जैसे होते हैं, लेकिन यह मुख्यतः एक मौसमी संक्रमण है। कोरोना वायरस जहां हर मौसम में फैल सकता है, वहीं एचएमपीवी अधिकतर सर्दी के मौसम में सक्रिय होता है।
कितना रहता है असर?
सामान्य मामलों में एचएमपीवी का असर तीन से पांच दिन तक रह सकता है। यह वायरस ऊपरी और निचले श्वसन पथ दोनों को संक्रमित कर सकता है।
एचएमपीवी से बचने के लिए सतर्कता जरूरी है। भीड़ से बचाव, मास्क पहनना और हाथ धोना प्रमुख सुरक्षा उपाय हैं। स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।