Wednesday, February 5, 2025
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एक देश, एक चुनाव: लोकसभा में पेश हुआ विधेयक, कब और कैसे लागू होगा ‘एक देश, एक चुनाव’?

17 दिसंबर 2024:

एक देश, एक चुनाव” विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विधेयक को सदन में रखा। चर्चा के दौरान कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस जैसे प्रमुख विपक्षी दलों ने इस विधेयक का विरोध किया। इससे पहले, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले गुरुवार को “एक देश, एक चुनाव” विधेयक को मंजूरी दी थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के 73वें स्वतंत्रता दिवस पर एक देश, एक चुनाव के विचार को प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा था कि देश के एकीकरण की प्रक्रिया हमेशा जारी रहनी चाहिए। 2024 में भी प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर इस पर अपने विचार साझा किए थे।

क्या है “एक देश, एक चुनाव” प्रस्ताव?

इस प्रस्ताव का उद्देश्य पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराना है। वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होते हैं, या तो पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद या जब किसी कारणवश सरकार भंग हो जाती है। यह व्यवस्था भारतीय संविधान में निर्धारित की गई है। अलग-अलग राज्यों की विधानसभाओं के कार्यकाल अलग-अलग समय पर समाप्त होते हैं, उसी के अनुसार उस राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं। हालांकि, कुछ राज्य ऐसे हैं, जैसे अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम, जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं।

राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले या उसके बाद छह महीने के भीतर होते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लंबे समय से “एक देश, एक चुनाव” के समर्थक रहे हैं। प्रधानमंत्री ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर इस विचार को प्रस्तुत किया था, और तब से अब तक कई बार भाजपा की ओर से इस विचार को आगे बढ़ाया गया है।

एक देश एक चुनाव पर बहस क्यों हो रही है?

“एक देश, एक चुनाव” की बहस 2018 में विधि आयोग की एक मसौदा रिपोर्ट के बाद शुरू हुई थी। आयोग ने आर्थिक कारणों को प्रमुख रूप से गिनाया था। आयोग के अनुसार, 2014 लोकसभा चुनावों और उसके बाद हुए विधानसभा चुनावों का खर्च लगभग समान रहा। अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो यह खर्च 50:50 के अनुपात में बंट जाएगा, जिससे आर्थिक रूप से लाभ होगा।

विधि आयोग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा था कि 1967 के बाद एक साथ चुनाव कराने की प्रक्रिया बाधित हो गई। आयोग ने यह भी कहा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के शुरुआती सालों में देश में एक ही पार्टी का शासन था और क्षेत्रीय दल कमजोर थे। लेकिन अब राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आ चुका है, और कई राज्यों में क्षेत्रीय दलों की संख्या बढ़ी है।

चुनाव आयोग का क्या रुख है?

चुनाव आयोग का कहना है कि वह एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव करवा सकता है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के अनुसार, एक ही समय में संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव कराने का विषय चुनाव आयोग के दायरे में नहीं आता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह फैसला लिया जाता है, तो आयोग इस कार्य को प्रशासनिक रूप से संभाल सकता है।

सरकार और विपक्ष का क्या कहना है?

“एक देश, एक चुनाव” भाजपा के चुनावी एजेंडे में शामिल रहा है। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने इस विधेयक को अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान पेश करने का निर्णय लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सभी से इस कानून के लिए एकजुट होने का आग्रह किया।

वहीं, विपक्षी दलों, विशेषकर कांग्रेस, ने इस विधेयक का विरोध किया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि लोकतंत्र में “एक देश, एक चुनाव” काम नहीं कर सकता। खरगे का तर्क है कि अगर हमें लोकतंत्र को जीवित रखना है, तो चुनाव जब भी आवश्यक हो, होने चाहिए, न कि एक साथ चुनाव कराने के लिए इंतजार किया जाए।

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